अगस्तमुनि – भारत ऋषि मुनियों की भूमि है,जहां पर कहीं गुनी और महान ऋषियों ने जन्म लिया।वहीं उत्तराखंड जो की देव भूमि कहलाता है, वहां पर भी साक्षात देवी देवताओं का वास है, कई मंदिर, तथा कई स्थान प्रसिद्ध हैं। जहां पर आज भी देवी – देवताओं वास हैं, साथ ही देवी देवता अपने भक्तों को आशीर्वाद देकर अपने भक्तों की मनोकामना को पूर्ण करते हैं। वैसे ही एक प्राचीन प्रसिद्ध देव स्थान है अगस्तमुनि।
अगस्तमुनी रुद्रप्रयाग जिले में समीप बसा है, जो की रुद्रप्रयाग से मात्र 18 किलोमीटर की दूरी पर समुद्र तल से 1000 मीटर की ऊंचाई पर मंदाकिनी नदी के किनारे बसा एक खूबसूरत शहर है। यहां से श्री केदारनाथ धाम मात्र 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यात्रा सीजन के दौरान अगस्तमुनि बाजार में काफी रौनक छाई रहती है। यहां पर यात्रियों को रुकने की उचित वव्यस्ता उपलब्ध होती है। यहां के लोग प्रेम और प्यार की परिभाषा को दर्शाते हैं। यहां का वातावरण सुकून और शांति का स्वरूप है।

अगस्तमुनि तक कैसे पहुंचे ?
रुद्रप्रयाग से सबसे नजदीक एयरपोर्ट जोली ग्रांट एयरपोर्ट है जो की 107 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। श्रद्धालू उत्तराखंड परिवहन निगम की बस, टैक्सी, तथा कैब से भी यहां पर पहुंच सकते हैं। सबसे नजदीक रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है, जो की 87किलोमीटर दूर है। आप यहां साल के किसी महीने में भी दर्शन कर सकते हैं, ज्यादा तर पर्यटक यहां पर गर्मियों के माह में आते हैं, उस वक्त यहां पर मौसम बड़ा सुहाना होता है, बारिश में यहां चारों तरफ हरियाली दिखाई पड़ती है, तथा वातावरण काफी स्वच्छ रहता है।
पौराणिक कथा
- यह जगह महाऋषि अगस्त की तपोस्थली है। यहां आज भी उनका मंदिर एवं उनकी मूर्तियां स्थित है। माना जाता है की पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान अगस्त ऋषि जी यहां पर काफी समय तक अपने तपोवन और तेज से उन्होंने यहां पर तपस्या की। महा ऋषि अगस्त ने समुद्र राक्षसों के अत्याचार से देवताओं को मुक्ति दिलाने हेतु एक बार सारा समुद्र का जल पी लिया था।
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- महा ऋषि के बारे में यह भी कहा जाता है कि एक बार उन्होंने अपनी मंत्र शक्ति से पृथ्वी पर मौजूद सारे सागर, महासागर और समुद्र का जल पी लिया, और इसी प्रकार उन्होंने वातापी और आतापी नामक दुष्ट राक्षसों का वध कर उन्हें यमलोक पहुंचा दिया था।
यहां पर अगस्त से जुड़ा एक मैदान भी है, जहां पर बैसाखी मेले का भी आयोजन किया जाता है, साथ ही इस मैदान में केदारनाथ धाम जाने के लिए हेलीपैड की सुविधा भी उपलब्ध है। मैदान में अनेकों कार्यक्रम किए जाते हैं, जैसे की यहां पर राम लीला का भी बड़े धूमधाम से भव्य आयोजन किया जाता है , जिससे देखने के लिए श्रद्धालु दूरदराज से आते हैं। यहां की आसपास के लोग मुनि जी को अपना इष्ट देवता के रूप में पूजते हैं। अगस्त के वंशजों को अगस्तवंशी कहते हैं । कहा जाता है की श्रीराम अपने वनवास काल में ऋषि अगस्त के आश्रम में एक बार पधारे थे।

दूसरी कहानी यह है कि, एक बार माता पार्वती जी की डोली मंत्रीगण लोग ले जा रहे थे तो वायुमार्ग में उन्हें अगस्त ऋषि मिले, उन्होंने संस्कृत में उन्हें कहा सर्प-सर्प जिसका अर्थ था जल्दी-जल्दी, तो माता पार्वती को लगा की वह सांप कहकर गणों को पुकार रहे हैं तभी माता पालकी से बाहर निकलकर अगस्त ऋषि को श्राप दे दिया कि तू सांप बन जा और कहा जाता है कि वह सांप बन के यहां पर रहे भी। वहीं कहा ये भी जाता है की गर्भ ग्रह में जो मूर्ति है, उसमें कई सालों तक एक सांप आता था और वह वही अंदर गर्भ गृह में गुम हो जाता था पूजा के वक्त वह बाहर निकलता था ।
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कहा यह भी जाता है कि उन्होंने अपनी मंत्र शक्ति के बल पर विद्यांचल पर्वत को भी झुका दिया था। विद्यांचल पर्वत उनके शिष्य थे, जिन्हें अपनी ऊंचाई पर बहुत घमंड था। साथ ही महर्षि अगस्त ने ही विंध्यांचल की पहाड़ी में से दक्षिण भारत में पहुंचने का सरल मार्ग बनाया था।

दक्षिण भारत में उनकी लोकप्रियता बहुत अधिक रही थी। उन्होंने कई उल्लेखनीय कार्य भी किए थे। साथ ही ये भगवान शिव शंकर के सबसे श्रेष्ठ सात ऋषियों में से एक थे। महर्षि राजा दशरथ के राज गुरु भी थे। साथ ही ऋग्वेद के कई मंत्र इनके द्वारा ही दृष्ट हैं। महर्षि अगस्त ने ऋग्वेद के प्रथम मंडल के 165 से 191 सक्तों को बताया था। कहा जाता है की श्रीराम अपने वनवास काल में ऋषि अगस्त के आश्रम में एक बार पधारे थे।बहुत वर्षों पहले मान्यताओं के अनुसार एक बार महा अगस्तमुनि मंदिर के पुजारी का देहांत हो गया था, उसके बाद वहां पूजा बंद हो गई। उसके बाद जो भी मंदिर के अंदर जाता उसकी मृत्यु हो जाती।

उसी दौरान दक्षिण से दो आदमी उत्तराखंड यात्रा पर आए, जिसके बाद वो अगस्तमुनि मंदिर के दर्शन करने को पहुंचे। स्थानिया लोगों ने उन्हें मंदिर के अंदर जाने को मना किया, उन्होंने बताया की मंदिर के अंदर जो भी जायेगा उसकी मृत्यु हो जायेगी। लेकिन उन्होंने कहा की अगस्त ऋषि उनके भी भगवान है, और उसके बाद वो दोनो मंदिर के अंदर गए उन्होंने भगवान के दर्शन किए और सही सलामत वापस बाहर आ गए। उसके बाद स्थानिया लोगों ने उनसे मंदिर का कार्यभार पूजा व्यस्थता संभालने को कहा। जिसके बाद वे दोनो मान गए। साथ ही इन्होंने पहाड़ के ऊपर अपने रहने का स्थान भी बना लिया, और बेंजी नामक गांव को वहां पर बसाया। उसके बाद से अगस्तमुनि मंदिर में पुजारी बेंजी नामक से ही होते हैं।
प्रमुख त्योहार
मुनि महाराज के मंदिर का आगमन वैसे तो सर्व भक्तों से भरा ही रहता है, लेकिन एक दिन साल में ऐसा भी आता है जब भक्तों को मंदिर में खड़े होने तक की जगह नहीं मिलती है, मंदिर के आस पास बनी ऊंची इमारतों की छतों पर खड़े होकर भक्तजन उस अवसर का इंतजार करते हैं, वह दिन होता है दीपावली का,जब मंदिर के प्रांगण में शाम होते ही हजारों दीप जलाए जाते हैं और अगस्त मुनि महाराज को रोशनी से जगमगाया जाता है।पूजा पाठ किया जाता है और अंत में भक्तजन मंदिर से जलते हुए दीपक अपने अपने घरों में सुख समृद्धि की कामना करते हैं। वह बहुत ही अद्भुत दृश्य होता है। यह परंपरा सदियों से चलती रही है और आगे भी चलती रहेगी।

वैसे तो मंदिर में सदेव ही पूजा पाठ और भक्तों का तांता लगा रहता है और हिंदू मान्यतों के अनुसार सावन माह में पूरे महीने बहुत ही अद्भुत नजारा रहता है।अगस्तमुनि में बैसाखी के पर्व को बहुत धूम धाम से मनाया जाता है।यह पूरे साल का सबसे सुनहरा दिन होता है, व्यस्त वातावरण , बाजारों में चहल पहल व चारों तरफ भीड़ भाड़ लगी रहती है। यहां पर बैसाखी के दिन अगस्तमुनि फील्ड मैं बहुत बड़ा मेला लगता है। वहीं, बैसाखी में कई गांव के लोग 13,14 अप्रैल को मंदिर के दर्शन के लिए इकट्ठा होते हैं, और मेला देखने के किए अपने रिश्तेदारों के घर पहले ही पहुंच जाते हैं। मेले में चर्खी, सर्कस, हाथी की सवारी जैसी अनेकों मनोरंजन मनमोहक सामान देखने को मिलता है ,साथ ही खाने में रस से भरी जलेबियां और आइसक्रीम तो बहुत ज्यादा बिकती हैं। लोग बारे चाव से मेला का आनंद लेते हैं।
।।जय अगस्तमुनि महाराज जी की।।
RESEARCH AND WRITTEN BY
RAVEENA NEGI

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