उत्तराखंड की होली

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बरसाने की होली के बाद विख्यात होली है कुमाऊं की होलीउत्तराखंड में होली की शुरुआत पौष के महीने आते हो जाती है। अबीर गुलाल के साथ होली गायन की परंपरा है । जिसमे होल्यार घरघर जाकर होली के गीत गाते है। ये त्यौहार 2 महीने तक चलता है। यहां की होली पूरी तरह से हिन्दुस्तानी शास्त्रीय अंदाज में गाई  जाती है। होली गायन गणेश पूजा से शुरू होकर शिव की आराधना के साथ हंसी-मजा से भरपूर होती है। अंत मे आशीष /आशिर्वाद वचनों के साथ ही  होली गायन खत्म होता है।

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गोपेश्वर में होली की धूम ।

कुमाऊं की होली का इतिहास

मान जाता है कुमाऊं  कि बैठकी होली की परंपरा 15वीं शताब्दी से शुरू हुई।  चंपावत में चंद वंश के शासनकाल से होली गायन की परंपरा शुरू हुई थी। कुमाऊं से होकर यह धीरे-धीरे सभी जगह फैल गई और पूरे उत्तराखंड पर इसका  रंग चढ़ गया।

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होली के रंग मे रंगे पहाड़ों के लोग ।

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कुमाऊं की बैठकी होली

बैठकी होली के गीतों से ही होली की शुरुआत होती है। बैठकी होली घर, मंदिरों में गाई जाती है। मान्यता है  कि यहां वसंत पंचमी से ही  होली की शुरू हो जाती है लेकिन कुमाऊं के कुछ हिस्सों में पौष के महीन के पहले रविवार से होली की शुरुआत होती है। उस समय सर्द ऋतु अपने चरम मे होती है। सर्द रातों को काटने के लिए सुरीली महफिलें जमने लगती हैं। हारमोनियम व  तबले की था साथ होते हैबैठकी होली मे पुरुष की अलग महफिल बैठती है और महिलाओं की अलग

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कुमाऊं की खड़ी होली

महिलाओं की  बैठकी होली ,जिसे महिला होली भी कहते है

 इसमें लोकगीतों का अधिक प्रयोग किया जाता है या यूं कह की इनका अधिक महत्व है ,इसमें नृत्य-संगीत के साथ हंसी मजा का अधिक प्रचलन है। इसमें गाया जाने वाला संगीत का उधारण है := बलमा घर आयो फाल्गुन मे। पुरुषों की बैठकी होली का अपना महत्व है। इसमें फूहड़पन और मजा  नहीं होता है।  हारमोनियम, तबले और चिमटे के साथ पुरुष की टोलियां गीत गाते नजर आते हैं। ठेठ पहाड़ तरीके से गीत गा जाते हैजिसकी वजह से एक अलग ही मजा आता है

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महिलाओं की बैठकी होली ।

कुमाऊं की होली में राग परंपरा

धमा राग होली गायन की परंपरा है। पीलू,  जंगलाकाफी, विहाग, जैजवंती,, भीम पलासी, खयाज और  बागेश्वरी रागों में होली गाई जाती है। दोपहर में अलग और शाम को अलग रागों में महफिले सजती है। पौष महीन के पहले रविवार से होली गायन शुरू हो जाता है और यह फालगुन पूर्णिमा तक लगातार चलता है।

कुमाऊं की खड़ी होली

खड़ी होली को खड़े होकर समूह में गाया जाता है। यह अधिकतर ग्रामीण इलाकों में गाई जाती  है। सफेद रंग का कुर्ता, चूड़ीदार पजामा और टोपी होली के खास वस्त्र है। होली गाने के  लिए एक घर से दूसरे घर जाते हैं। गीतों के माध्यम से खुशहाली व समृद्धि की कामना  की जाती है। खड़ी होली में अधिक हंसी-मजा और उल्लास होता है।

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कुमाऊं की होली में राग परंपरा

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क्या है चीरदहन

ये कुमाऊं का होलिका दहन है। जिसमे  हरे पैया के पेड़ की टहनी को बीच में खड़ा किया जाता है। उसके चारों  ओर रंगोली बनाई जाती है। हर घर से चीर लाया जाता है और पैया की टहनी पर चीर बांधे  जाते हैं जिन्हे चीर बंधन कहते है।

होली के 1 दिन पहले होलिकादहन के साथ ही चीरदहन भी हो जाता है। यह  प्रह्लाद का अपने पिता हिण्यकश्यप पर सांकेतिक जीत का उत्सव भी है। घरों में होल्यारों  को गुजिया या आलू के गुटके दिए जाते है

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चीरदहन

होली का स्वांग 

यह महिलाओं में अधिक प्रचलित है या इसमें ज्यादा भागीदार औरतों की होती है। जैसे-जैसे होली  नजदीक आती जाती है, हंसी-मजा भी चरम पर होता है। महिलाएं पुरुषों का भेष बनाकर  स्वांग या नाटक  रचती हैं। परिवार के किसी भी पुरुष के वस्त्रों को पहन कर और उसका पूरा भेष  बनाकर उसकी नकल की जाती है। स्वांग सामाजिक बुराई पर व्यंग्य करने का एक माध्यम  है

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परिजन होली के दिन एक दूसरे से गले मिलते हुए ।

होली मे शुभकामना की परंपरा

होली मे सबके लिए कामना की जाती है की उनकी लंबी उम्र हो जिसके लिए अलग तरीके से गायन है जो इस प्रकार से है:

हो हो हो लख रे (may you reside for hundred and thousand years)

हमार आमा बुबू जी रौला सौ लाख बरिस (may our grandparents live for a hundred and thousand years)

हमार इजा बौजू जी रौला सौ लाख बरिस (may our parents live for hundred and thousand years)

हमार दाज्यु भौजी जी रौला सौ लाख बरिस(may our brother and his family live for hundred and thousand years)

हो हो हो लख रे (may you reside for  hundred and thousand years)

 

RESEARCH AND WRITTEN BY AMIT NEGI

15 COMMENTS

  1. Bahut sundar garhwal ki holi k bare me pta to tha lekin kumaon ka nahi pta tha ki kumaon me es tarah B’nai jaati h holi ❤️
    Beautifully written 🙌❤️

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