खतडुवा त्यौहार – उत्तराखण्ड (उत्तराखंड) में लगभग प्रत्येक संक्रान्ति के दिन त्यौहार मनाने की परम्परा है। इसी क्रम में आश्विन मास की संक्रांति के दिन उत्तराखंड के कुमाऊँ मंडल के लोग खतडुवा लोक पर्व मनाते हैं।अनेक गांवों में बड़े उल्लास से खतडुवा त्योहार मनाया जाता है।इस त्योहार में रात्रि के समय छिल्लों के प्रकाश में एक विशेष रूप से बनाये पुतले को, चौराहे में खड़ा कर आग दी जाती है ।
खतड़ुआ शब्द का अर्थ
खतड़ुआ शब्द “खातड़” या “खातड़ि” शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ है रजाई या अन्य गर्म कपड़े। भाद्रपद की शुरुआत (सितम्बर मध्य) से पहाड़ों में जाड़ा शुरु हो जाता है। यही वक्त है जब पहाड़ के लोग पिछली गर्मियों के कपड़ों को निकाल कर धूप में सुखाते हैं और पहनना शुरू करते हैं।
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क्या है खतडुवा त्यौहार ?
खतडुवा त्योहार गांवों में मुख्य रूप से शीत ऋतु के आगमन के प्रतीक जाड़े से रक्षा और पशुओं की रोगों और ठंड से रक्षा की कामना के रूप में मनाते है। कुछ लोक कथाओं के अनुसार खतड़वा पर्व को कुमाऊँ मंडल के लोग अपने सेनापति और राजा की विजय की खुशी में मनाते हैं।

खतड़वा त्यौहार कैसे मनाते हैं ?
इस त्यौहार के दिन गांवों में सुबह, गौशाला,देलि और कमरों की साफ सफाई ,लिपाई की जाती है। दिन में पूजा पाठ करके, पारम्परिक पहाड़ी व्यजंनों का आनन्द लेते हैं। खतड़वा के डंडे बनाने और सजाने की जिम्मेदारी घर के बच्चों की होती है।उन डंडों को कांस की घास के साथ उसमे अलग अलग फूलों से सजाते हैं। शाम के समय घर की महिलाएं पूरे गौशाला के अन्दर इस खतड़ुवा को बार–बार घुमाया जाता है और भगवान से कामना की जाती है कि वो इन पशुओं को दुख–बीमारी से दूर रखें।
गांव के बच्चे चौराहे पर लकड़ियों का एक बड़ा ढेर लगाते हैं गौशाला के अन्दर से मशाल लेकर महिलाएं भी इस चौराहे पर पहुंचती हैंl फिर उन डंडों को लेकर और साथ मे ककड़ी, चूड़े लेकर उस स्थान पर पहुँचा जाता है, उसके बाद बनाये पुतले को आग लगाकर,उसे डंडों से पीटते हैं और गीत गाये जाते हैं। उसके बाद पहाड़ी ककड़ी काटी जाती है। थोड़ी आग में चढ़ा कर ,बाकी ककड़ी आपस मे प्रसाद के रूप में बांट कर खाई जाती है।

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खतड़वे कि आग में से कुछ आग घर को लाई जाती है। फिर घर के सभी सदस्य खतडुवा, की आग को फेरते हैं। जिसके पीछे भी यही कामना होती है,की नकारात्मक शक्तियों का विनाश और सकारात्मकता का विकास। किसी किसी गावँ में तो ,खतरूवा मनाने के लिए विशेष चोटी या धार होती है,जिसे खतडूवे धार भी कहते हैं।

खतडुवा त्यौहारइस तरह से यह त्यौहार पशुधन को स्वस्थ और हृष्ट-पुष्ट बने रहने की कामना के साथ समाप्त होता है। गढ़वाल और नेपाल के कुछ अंशों में भी यह त्यौहार मनाया जाता हैl कुछ लोग इसे गढवाल या कुमाऊं की आपसी वैमनस्यता के रूप में भी जोड़ते हैं। एक तर्कहीन मान्यता के अनुसार कुमाऊं के सेनापति गैड़ सिंह ने गढवाल के खतड़ सिंग (खतड़ुवा) सेनापति को हराया था, उसके बाद यह त्यौहार शुरू हुआ. लेकिन अब लगभग सभी इतिहासकार वर्तमान उत्तराखण्ड के इतिहास में गैड़ सिंह या खतड़ सिंह जैसे व्यक्तित्व की उपस्थिति और इस युद्ध की सच्चाई को नकार चुके हैं और इस काल्पनिक युद्ध का उल्लेख किसी भी ऐतिहासिक वर्णन में नही है।
RESEARCH AND WRITTEN BY HIMANSHU MEHRA
उत्तराखंड में विभिन्न प्रकार के लोक त्योहार मनाए जाते है काफी अच्छी जानकारी ऐसे ही एक अनोखे त्योहार की❤️
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