नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है जो कि नव + रात्रि से मिलकर बना है जिसका मतलब नौ रातें होता है।नवरात्रि भारत में हिन्दू धर्म के लोगों के द्वारा मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण पर्व है।इस पर्व को लगातार दस दिनों तक मनाया जाता है और दसवें दिन को दशहरा के नाम से जाना जाता है।इन नौ रातों तक मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा आराधना की जाती है।माता का हर एक रूप माँ की एक अलग शक्ति का स्वरूप हैं जो इस बात का प्रतीक हैं कि माँ दुर्गा अपने हर एक रूप में हमारे बीच कहीं न कहीं विराजमान हैं।
हिंदी कैलेंडर के अनुसार नवरात्रि वर्ष में चार बार पौष, चैत्र, शरद एवं आषाढ़ माह में आती है और चारों माहों में प्रतिपदा से लेकर नवमी तक नवरात्रि मानने का नियम है। हालांकि मुख्य रूप से सिर्फ चैत्र एवं शरद माह की नवरात्रि मनायी जाती है।अगर अंग्रेज़ी कैलेंडर की बात करे तो,एक नवरात्रि मार्च-अप्रैल में और दूसरी सिंतबर-अक्टूबर में आती हैं। हिंदू धर्म के अनुसार हर वर्ष आषाढ़ माह के नवरात्रे गुप्त नवरात्रे के रूप में मनाए जाते हैं।
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अगर कुछ मान्यताओं की बात करें तो पहली यह मान्यता है कि महिषासुर ने कठोर तपस्या करके देवताओं से अजेय होने का वरदान ले लिया था। इसके बाद महिषासुर ने अपनी शक्तियों का गलत उपयोग किया और देवताओं को भी परेशान करना शुरू कर दिया। इससे क्रोधित होकर देवताओं ने दुर्गा मां की रचना की और उन्हें तमाम अस्त्र शस्त्र दिए। इसके बाद शक्ति स्वरूप मां दुर्गा का महिषासुर से नौ दिनों तक संग्राम छिड़ा और आखिरकार महिषासुर का वध हुआ। इसलिए नवरात्र में मातारानी के शक्तिस्वरूप की पूजा होती है और नौवें दिन नौ कन्याओं को मां का रूप मानकर पूजा की जाती है।दूसरी मान्यता यह है कि भगवान राम ने भी रावण को मारने के लिए नौ दिनों तक माता का व्रत व पूजन किया था और दसवें दिन रावण का वध किया था। तभी से दशहरा से पहले नौ दिनों को माता को समर्पित कर शारदीय नवरात्र के रूप में मनाया जाता है।
नवरात्रि मनाने का जहाँ पौराणिक मान्यताओं का वर्णन हैं वही इसके पीछे वैज्ञानिक आधारित भी मान्यता हैं।जैसा कि आपने देखा दोनों नवरात्रि मौसम बदलने के समय में मनाई जाती हैं,और ऐसे समय में शरीर को आने वाले मौसम के लिए ढालना काफी जरूरी होता हैं। यहीं कारण हैं कि व्रत रखने से और सही भोजन के सेवन से तथा मांस-मछी से दूर रह कर,भोजन में कम नमक और संतुलित आहार से शरीर आने वाले मौसम में स्वस्थ रहता हैं।
नवरात्रि को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक भी माना जाता हैं।देवी माँ द्वारा राक्षसों का वध करना तथा श्री राम द्वारा रावण का वध यहीं दिखाता हैं कि चाहे कोई कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो उसका अंत अवश्य होता हैं।किसी भी मनुष्य को कभी भी घमंड नहीं करना चाहिए तथा अपनी शक्तियों का हमेशा सही प्रयोग करना चाहिए। नवरात्रि का पर्व यह शिक्षा भी देता हैं कि अगर जरूरत पड़ी तो स्त्री अपना विकराल रूप धारण कर सभी बुराइयों का नाश कर सकती हैं,इसलिए हमें स्त्री का कभी अनादर नहीं करना चाहिए और ना ही स्त्री पर अत्याचार करने चाहिए।
वहीं उत्तराखंड के लोगो द्वारा नवरात्रों में हरेला पर्व भी मनाया जाता हैं। हरेला का पर्व नई ऋतु के शुरू होने का पर्व है। यह वर्ष में तीन बार आता है। पहला चैत मास में दूसरा श्रावण मास में तथा तीसरा व आखिरी पर्व हरेला अश्विन मास में मनाया जाता है।चैत्र मास में – प्रथम दिन हरेला बोया जाता है तथा नवमी को काटा जाता है।श्रावण मास में – सावन लगने से नौ दिन पहले आषाढ़ में बोया जाता है और दस दिन बाद श्रावण के प्रथम दिन काटा जाता है। आश्विन मास में — नवरात्र के पहले दिन बोया जाता है और दशहरा के दिन काटा जाता है।
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श्रावण मास में पड़ने वाले हरेले को अधिक महत्व दिया जाता हैं। क्योंकि श्रावण मास शंकर भगवान जी को विशेष प्रिय है। सावन लगने से नौ दिन पहले पांच या सात प्रकार के अनाज जैसे कि धान, उड़द, गेहूं, जों, गेहत, सरसो और भट्ट के बीज एक रिंगाल की छोटी टोकरी में मिटटी डाल के बोए जाते हैं| इसे सूर्य की सीधी रोशनी से बचाया जाता है और प्रतिदिन सुबह पानी से सींचा जाता है। नौंवें दिन इनकी गुड़ाई की जाती है और दसवें यानि कि हरेला के दिन इसे काटा जाता है। और विधि अनुसार घर के बुजुर्ग सुबह पूजा-पाठ करके हरेले को देवताओं को चढ़ाते हैं| उसके बाद घर के सभी सदस्यों को हरेला लगाया जाता हैं।
देवभूमि उत्तराखंड में पहले से ही अनेकों देवी-देवताओं का वास हैं।यहाँ हर जगह मंदिरों की मौजूदगी यहीं साबित करती हैं कि यहाँ के लोगों के मन में आस्था की कोई कमी नहीं हैं। अगर बात की जाए नवरात्रों की तो ऐसे पर्व पे यहाँ मंदिरों में भजन-कीर्तन किया जाता हैं तथा ढोल-दमाऊ की ताल पे लोग अपने लोक नृत्य व लोक गायन का कार्यक्रम करते हैं।इसके अलावा रात्रि में जागर का भी आयोजन होता हैं। सुबह-सुबह लोग स्नान करके मंदिर में साफ- सफाई करके पूजा अर्चना करते हैं।यहीं दिनचर्या नौ दिनों तक चलती हैं जहाँ पूरे दिन व्रत रख कर शाम में पूजा करके प्रशाद ग्रहण करके व्रत को तोड़ा जाता है।आखिरी दिन माता की पूजा करके,कन्याओं की पूजा कर के,प्रसाद खिला कर नवरात्रों का समापन किया जाता हैं।प्रसिद्ध मंदिरों में इस मौके पर मेला भी लगता हैं जिसमे लोग दूर दूर से आते हैं। पहाड़ो में अलग अलग जगहों पे नवरात्रि मनाने के कुछ रीति-रिवाज़ होते हैं जो कि पुराने समय से चले आ रहें हैं लेकिन आजकल की चकाचौंध में ये रिवाज़ एक तरह से ग़ायब हो गए हैं।आपको और हमको मिल कर प्रयास करने हैं ताकि हम अपनी धरोवर और संस्कृति को आगे बढ़ाए।सबसे पहले हमें अपने सारे पर्व पूरे जोश से मनाने चाहिए तथा अपनी बोली-भाषा का पूरा सम्मान करना चाहिए।ऐसे ही कुछ छोटे कदमों की सहायता से हम आने वाली पीढ़ी को उनकी जड़ो/संस्कृति के बारे में बता कर उन्हें भी इससे जुड़े रहने की शिक्षा दे सकते हैं।
जय उत्तराखंड।
जय भारत।
RESEARCH AND WRITTEN BY DEEPALI MARTOLIA
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