हल्द्वानी :कुछ दिन से नैनीताल जिले के हल्द्वानी शहर में हंगामा मचा हुआ है। हाई कोर्ट से अतिक्रमण हटाए जाने के आर्डर आने के बाद हल्द्वानी के बनभूलपुरा इलाके में रह रहे लोग सड़क पर उतर आए, हालांकि सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के कारण बनभूलपुरा के लोगों को राहत मिली है।
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इस लेखन में हम कुछ सवालों के जवाब ढूंढेंगे :
1. भू-कानून क्या है और उत्तराखंड को इसकी जरूरत क्यों है?
2. क्या हाई कोर्ट का फैसला सही था और आगे क्या करना चाहिए?
आइए जानते हैं कि आखिर मामला क्या है।
2013 में गोला नदी पर गैर कानूनी खनन होने की वजह से वहां का पुल टूट गया था जिसके बाद नैनीताल हाईकोर्ट ने रेलवे विभाग को इस मामले में सर्वे कराने के निर्देश दिए थे। सर्वे में पाया गया कि रेलवे लाइन के पास 4365 अतिक्रमण हैं। हालांकि 1907 के दस्तावेजों के आधार पर गफूर बस्ती के निवासियों ने यह दावा किया कि वह क्षेत्र “नज़ुल भूमि ” के अंतर्गत आता है, जिसके तहत यह ज़मीन गैर-कृषि उद्देश्य (भवन, सड़क जैसे सार्वजनिक स्थानों) के लिए उपयोग की जाने वाली सरकारी भूमि में आता है।
परंतु हाईकोर्ट ने इसे कार्यालय ज्ञापन (संदेश) होने की वजह से अमान्य माना है और यह भी बताया कि 1943 से यह रेलवे लाइन भारत सरकार के अधीन है।
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क्या है भू कानून?
भू कानून के अंतर्गत बाहरी राज्य का कोई भी व्यक्ति किसी अन्य राज्य में जमीन नहीं खरीद सकता।
वर्ष 2000, 9 नवंबर को उत्तराखंड की स्थापना की गई थी ।
वर्ष 2002 में सरकार द्वारा निर्णय लिया गया की उत्तराखंड में बाहरी व्यक्ति सिर्फ 500 वर्ग मीटर की कृषि जमीन ही खरीद सकता है ।
वर्ष 2007 में बाहरी व्यक्ति के लिए इस रेखा को घटाकर 250 वर्ग मीटर कर दिया गया था।

वर्ष 2018, 6 अक्टूबर को उत्तराखंड सरकार द्वारा इस कानून पर संशोधन कर दिया गया, उत्तरप्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम 1950 में संशोधन का विधेयक पारित किया गया| इसमें धारा 143 (क) और धारा 154(2) जोड़ी गई जिसके तहत पहाड़ों में भूमी खरीद ने की अधिकतम सीमा समाप्त कर दी गई। निवेश और उद्योगों को बढ़ावा देने के नाम पर लाये इस संशोधन से अन्य राज्य का व्यक्ति अपनी इच्छा अनुसार कितनी भी ज़मीन खरीद सकता है।
इस फैसले का सीधा सीधा असर आने वाले समय में हमारे जल जंगल,जमीन, जलवायु,सभ्यता,परंपरा,लोक भाषा और लोक संस्कृति पर पङेगा। इसी वजह से आज युवा सड़कों में बैठ कर यह हिमाचल के तर्ज में धारा 118 के तहत(जिसमें कोई भी व्यक्ति कृषि योग्य भूमि नहीं खरीद सकता।

आखिर में सवाल यही उठता है कि उत्तराखंड में भू- कानून लागू करने में इतनी देरी क्यूं ? संवेदनशील इलाका होने के बावजूद सरकार द्वारा यहां की संस्कृति, जलवायु, भुमि आदि के संरक्षण में कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए।
हल्द्वानी मामले की वजह से भू- कानून फिर से सतह पर आ गया है। अगर पहले से ही उत्तराखंड में भू-कानून होता तो गफूर बस्ती में रह रहे गैरकानूनी प्रवासी यहां बस्ते ही नहीं और न ही ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ता।
परंतु अब हमें इस गलती से यही सीखना चाहिए कि सरकार को उत्तराखंड में एक संशोधित भू- कानून लागू करना चाहिए जिससे हल्द्वानी जैसी स्थिति पैदा न हो।
न ही अतिक्रमण से किसी का घर उजड़ेगा, न ही कोई बेघर होगा।
Bhot khoob♥️🔥
उत्तराखंड मांगे कानून ।
Uttarakhand mange bhoo manoon
Uttarakhand mange bhoo kanoon⛰️⛰️
Ab bhi sochna pad raha h sarkar ko ?
सुप्रीम कोर्ट हल्द्वानी के इस केस में पुनर्वास के लिए ही कहेगा। तो इन्हें और इनके साथ साथ देहरादून की अवैध कॉलोनीज को हरिद्वार और उधम सिंह नगर जिलों में पुनर्वासित करना चाहिए। साथ ही आने वाले परिसीमन को देखते हुए मुख्य हरिद्वार शहर, कनखल, खटीमा, पंतनगर आदि को छोड़ बाकी के हरिद्वार और उधम सिंह नगर जिलों को वापस उत्तर प्रदेश में मिलना। फिर एक सख्त भू कानून और मूल निवास लागू करना।