जहां पूरी दुनिया कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली का त्यौहार हर्षोल्लास से मनाती है वही पहाड़ों में परंपराएं एक अलग रूप ले लेती हैं हमारे पहाड़ों में दीपावली केवल 1 दिन का त्यौहार नहीं बल्कि पूरे महीने भर का त्यौहार है आइए जानते हैं कैसे प्यारे-प्यारे सुदूरवर्ती उत्तराखंड के पहाड़ों में विभिन्न प्रकार की दीपावली जिसे स्थानीय भाषा में बगवाल कहा जाता है मनाई जाती है अलग-अलग क्षेत्र की अलग-अलग दीपावली और अलग-अलग किस्से कहानी, रीति रिवाज बड़े ही रोचक हैं। इन सभी त्योहारों से हमें पहाड़ के समाज का मेल मिलाप व संस्कृति का पता चलता है।
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असल में हमारे लोक गीतों में 12 बगवाल का जिक्र है जैसे “12 ऐन बगवाल माधो सिंह, 16 ऐन शराद माधो सिंह।” आज कालांतर में 5 बगवाल है। सबसे पहले राज बगवाल जो टिहरी राजशाही से जुड़े लोग धनतेरस के दिन मानते है। उसके बाद काण्सि बगवाल जो छोटी दिवाली, जेठी बगवाल जो बड़ी बगवाल, ईगास (एकादशी) बगवाल जो द्वापर युग में पांडवो से संबंधित है कहते हैं जब कार्तिक मास की अमावस्या को पूरी दुनिया महालक्ष्मी की पूजा करती है पहाड़ के लोग एकादशी के दिन भगवान विष्णु को याद करते हैं ,स्थानीय लोग इसे रिक बगवाल भी कहते है जो टिहरी राजशाही के वीर लोधी रिखोला सेनापति के नाम पर रखा गया है।


एकादशी के दिन भगवान विष्णु को समर्पित है, उसके बाद मंगसीर बगवाल जो स्थानीय देवी देवताओं जैसे टिहरी में कैलापीर देवता, जौनसार में महासु देवता, उत्तरकाशी में कंडार देवता और साथ साथ टिहरी राजशाही के वीर सेनापति माधो सिंह भंडारी जी को भी समर्पित है इस दिवाली को रवाई में देवलांग और जौनसार में बूढ़ी दिवाली भी बोलते है।

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कहते हैं कि पहाड़ के लोग कार्तिक मास की अमावस्या को पढ़ने वाली दिवाली इसलिए नहीं मनाते थे क्योंकि पहाड़ों में खेतों का काम देर से पूरा होता था और पहाड़ों की फसल की कटाई एक महीने बाद तक पूरी होती थी इसलिए वह देर में दिवाली मनाते थे कई मान्यताएं यह भी है कि पहाड़ के लोगों को 11 11 दिन या 1 महीने बाद पता चला कि श्री राम अयोध्या को लौट चुके हैं।
RESEARCH AND WRITTEN BY
SHIVANK THAPLIYAL

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